सूर्य देवता
सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है।[1] समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता-धर्ता मानते थे।[2] सूर्य का शाब्दिक अर्थ है 'सर्व प्रेरक' । यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैवर्त पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उत्पत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अतः कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र-तत्र सूर्य मन्दिरों का निर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा और विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है कि ऋषि दुर्वासा के श्राप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है। सूर्य देवता का जन्मएक समय की बात है दैत्यों और देवताओं में बहुत दुश्मनी बढ़ गई। दैत्यों ने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वयं स्वर्ग पर शासन करने लगे। देवराज इन्द्र ने ये बात अपनी माता अदिति को बताई। अदिति ने भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उनसे वरदान मांगने को कहा। अदिति ने उनसे कहा कि "आप मेरे पुत्र के रूप में उत्पन्न होंवें। सूर्य भगवान ने तथास्तु कह दिया और अंतर्ध्यान हो गए। एक बार अदिति और उनके पति प्रजापति कश्यप में किसी बात को लेकर कलह हो गई। अदिति उस समय गर्भवती थीं। प्रजापति कश्यप ने उनके गर्भ में पल रहे बालक को मृत कह दिया उसी समय अदिति के गर्भ से एक तेज़ पूंज निकला और भगवान सूर्य प्रकट हुए और कहा कि आप दोनों इस पूंज का पूजन प्रतिदिन करें समय आने पर इस पूंज से एक पुत्र रत्न जन्म लेगा और आपके दुखों को दूर करेगा। अदिति और प्रजापति कश्यप ने उस पूंज का पूजन प्रतिदिन किया और उस पूंज से एक पुत्र ने जन्म लिया। प्रजापति कश्यप ने अपने उस पुत्र को विवस्वान् नाम दिया। देवासुर संग्राम में सभी दैत्य विवस्वान् के तेज़ को देखकर भाग खड़े हुए। सूर्य देवता और भगवान शिव का युद्धब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार कश्यप प्रजापति के प्रपौत्र माली और सुमाली थे। सुमाली ही रावण का नाना हुआ। दोनों ने महादेव की तपस्या की और उनसे वर मांगा कि वे सदा उनकी रक्षा करेंगे। इस पर महादेव ने उन्हें ये वर दे दिया। एक बार उन्होंने सूर्यदेव को युद्ध के लिए ललकारा। सूर्य उन्हें परास्त करने लगे किन्तु उन दोनों राक्षसों ने महादेव का स्मरण किया तो भगवान शंकर वहां प्रकट हुए और अपने त्रिशूल से सूर्यदेव पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव का सिर कट गया। कश्यप प्रजापति को जब इस बात का पता चला तो अपने पुत्र को मृत देखकर उन्होंने भगवान शंकर को श्राप दिया कि "तुमने आज जिस तरह मेरे पुत्र का मस्तक काटा है एक दिन तुम अपने इसी त्रिशूल से अपने ही पुत्र का मस्तक काट दोगे।" इसी श्राप ने भगवान शिव से उनके पुत्र गणेश का मनुष्य रूप वाला मस्तक कटवाया।
कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशाकोणार्क सूर्य मंदिर भारत के ओड़िशा के पुरी जिले में समुद्र तट पर पुरी शहर से लगभग 35 किलोमीटर (22 मील) उत्तर पूर्व में कोणार्क में एक 13 वीं शताब्दी सीई (वर्ष 1250) सूर्य मंदिर है। मंदिर का श्रेय पूर्वी गंगवंश के राजा प्रथम नरसिंह देव को दिया जाता है। सन् 1984 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है। मोढ़ेरा का सूर्य मंदिरमोढेरा सूर्य मंदिर गुजरात के मेहसाना जिले के “मोढेरा” नामक गाँव में पुष्पावती नदी के किनारे प्रतिष्ठित है। यह स्थान पाटन से ३० किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यह सूर्य मंदिर भारतवर्ष में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प-कला का बेजोड़ उदाहरण है। सोलंकी वंश के राजा भीमदेव प्रथम द्वारा सन् १०२६-१०२७ ई॰ में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। वर्तमान समय में यह भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और इस मंदिर में पूजा करना निषिद्ध है। 3-सूर्य मंदिरमार्तंड सूर्य मंदिर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रदेश के अनंतनाग ज़िले के मट्टन नगर के समीप स्थित 8वीं शताब्दी में ललितादित्य मुक्तपीड के राजकाल में बना एक हिन्दू मन्दिर है। यह सूर्य देवता के मार्तंड रूप को समर्पित है। इसे 15वीं शताब्दी में उस समय कश्मीर घाटी पर सत्ता करे हुए सिकंदर शाह मीरी द्वारा भारी क्षति पहुँचाई गई और इस समय यह खण्डरावस्था में है। 4-बेलाउर सूर्य मंदिर बेलाउर सूर्य मंदिर बिहार के भोजपुर जिले के बेलाउर गाँव के पश्चिमी एवं दक्षिणी छोर पर अवस्थित एक प्राचीन सूर्य मन्दिर है। इसका निर्माण राजा सूबा ने करवाया था। बाद मे बेलाउर गाँव में कुल ५२ पोखरा (तालाब) का निर्माण कराने वाले राजा सूबा को 'राजा बावन सूब' के नाम से पुकारा जाने लगा। राजा द्वारा बनवाए ५२ पोखरों मे एक पोखर के मध्य में यह सूर्य मन्दिर स्थित है। यहाँ छठ महापर्व के दौरान प्रति वर्ष एक लाख से अधिक श्रद्धालु आते हैं जिनमे उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश के श्रद्धालु भी होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सच्चे मन से इस स्थान पर छठ व्रत करने वालों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती है तथा कई रोग-व्याधियाँ से भी मुक्ति मिलती है। औंगारी सूर्य मंदिर, नालंदासूर्योपासना के लिए नालंदा का पूरे देश में काफी महत्व है। देश के 12 जगहों पर भगवान श्री कृष्ण के पौत्र राजा साम्ब द्वारा सूर्यपीठ की स्थापना की गयी थी, जिसमें से दो नालंदा में ही है। सिलाव प्रखंड का बड़गांव और एकंगरसराय प्रखंड का औंगारी धाम। दोनों जगहों पर पूरे देश के लोग छठ व्रत करने आते हैं। औंगारी धाम को सूर्यपीठ के रूप में धार्मिक व पौराणिक मान्यता है। लोग यहां आकर छठ करने की मनौती भी मांगते हैं। कहा जाता है कि यहां सभी तरह के रोग व्याधि, दुख दूर होते हैं और मनोकामना पूरी होती है। [3] हिन्दू धर्मानुसार
श्रीमदभागवत पुराण में श्री शुकदेव जी के अनुसार:- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है।
"हे राजन्! सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।
सूर्य भगवान की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक है। उनके साथ-साथ चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। हे राजन्! भगवान भुवन भास्कर इस प्रकार नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तह करते हैं।"
इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्यभारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, लकड़ी मिर्च घास हिरन शेर ऊन स्वर्ण आभूषण तांबा आदि का भी कारक है। मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। शरीर में पेट आँख ह्रदय चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है। और इस ग्रह से आँख सिर रक्तचाप गंजापन एवं बुखार संबन्धी बीमारी होती हैं। सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनावट सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन ६ माह का होता है। ६ माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है, और ६ माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केशरिया माना जाता है। धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है। यह पुरुष ग्रह है। इससे आयु की गणना ५० साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम दृष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है। सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनि और शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा ६ साल की होती है। सूर्य गेंहू घी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है। और वनस्पति जगत में लम्बे पेड का कारक सूर्य है। मेष के १० अंश पर उच्च और तुला के १० अंश पर नीच माना जाता है। सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर ० अंश से लेकर १० अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है। सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका का फ़ारसी नाम सुरैया है। और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम ’अ’ ई उ ए अक्षरों से चालू होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है। इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है। सूर्य देव का व्रतदे्खें रविवार व्रत कथा छठ महापर्व, शुक्ल पक्ष की सप्तमी, और १२ संक्रान्ति (गृहस्थ उपवास रहित स्नान,दान, पूजन,जप व होम करे । उपवास न करे) सूर्य का अन्य ग्रहों से आपसी सम्बन्ध
सूर्य का अन्य ग्रहों के साथ होने पर ज्योतिष से किया जाने वाला फ़ल कथन
सूर्य के साथ अन्य ग्रहों के अटल नियम जो कभी असफ़ल नही हुये
बारह भावों में सूर्य की स्थिति
हस्त रेखा में सूर्यजीवन में पडने वाले प्रभाव को हथेली में अनामिका उंगली की जड में सूर्य पर्वत और उस पर बनी रेखाओं को देख कर सूर्य की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। सूर्य पर्वत पर बनी रेखायें ही सूर्य रेखा या सूर्य रेखायें कहलाती है।अनामिका उंगली के तर्जनी से लम्बी होने की स्थिति में ही व्यक्ति के राजकीय जीवन का फ़ल कथन किया जाता है। उन्नत पर्वत होने पर और पर्वत के मध्य सूक्ष्म गोल बिन्दु होने पर पर्वत के गुलाबी रंग का होने पर प्रतिष्ठ्त पद का कथन किया जाता है। इसी पर्वत के नीचे विवाह रेखा के उदय होने पर विवाह में राजनीति के चलते विवाह टूटने और अनैतिक सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।[4] अंकशास्त्र में सूर्यज्योतिष विद्याओं में अंक विद्या भी एक महत्वपूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा हम थोडे समय में ही प्रश्न कर्ता के उत्तर दे सकते है।[5] अंक विद्या में "१" का अंक सूर्य को प्राप्त हुआ है। जिस तारीख को आपका जन्म हुआ है, उन तारीखों में अगर आपकी जन्म तारीख १,१०,१९,२८, है तो आपका भाग्यांक सूर्य का नम्बर "१" ही माना जायेगा.इसके अलावा जो आपका कार्मिक नम्बर होगा वह जन्म तारीख,महिना, और पूरा सन जोड़ने के बाद जो प्राप्त होगा, साथ ही कुल मिलाकर अकेले नम्बर को जब सामने लायेंगे, और वह नम्बर एक आता है तो कार्मिक नम्बर ही माना जायेगा।[6] जिन लोगों के जन्म तारीख के हिसाब से "१" नम्बर ही आता है उनके नाम अधिकतर ब, म, ट, और द से ही चालू होते देखे गये हैं। अम्क १ शुरुआती नम्बर है, इसके बिना कोई भी अंक चालू नहीं हो सकता है। इस अंक वाला जातक स्वाभिमानी होता है, उसके अन्दर केवल अपने ही अपने लिये सुनने की आदत होती है। जातक के अन्दर ईमानदारी भी होती है, और वह किसी के सामने झुकने के लिये कभी राजी नहीं होता है। वह किसी के अधीन नहीं रहना चाहता है और सभी को अपने अधीन रखना चाहता है। अगर अंक १ वाला जातक अपने ही अंक के अधीन होकर यानी अपने ही अंक की तारीखों में काम करता है तो उसको सफ़लता मिलती चली जाती है। सूर्य प्रधान जातक बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होता है। वह अपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उसे नहीं आता है। वह सरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज के प्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बना लेता है। सूर्य प्रधान जातक में कुछ बुराइयां भी होतीं हैं। जैसे अभिमान,लोभ,अविनय,आलस्य,बाह्य दिखावा,जल्दबाजी,अहंकार, आदि दुर्गुण उसके जीवन में भरे होते हैं। इन दुर्गुणों के कारण उसका विकाश सही तरीके से नहीं हो पाता है। साथ ही अपने दुश्मनो को नहीं पहिचान पाने के कारण उनसे परेशानी ही उठाता रहता है। हर काम में दखल देने की आदत भी जातक में होती है। और सब लोगों के काम के अन्दर टांग अडाने के कारण वह अधिक से अधिक दुश्मनी भी पैदा कर लेता है। सूर्य ग्रह सम्बन्धी अन्य विवरणसूर्य प्रत्यक्ष देवता है, सम्पूर्ण जगत के नेत्र हैं। इन्ही के द्वारा दिन और रात का सृजन होता है। इनसे अधिक निरन्तर साथ रहने वाला और कोई देवता नहीं है। इन्ही के उदय होने पर सम्पूर्ण जगत का उदय होता है, और इन्ही के अस्त होने पर समस्त जगत सो जाता है। इन्ही के उगने पर लोग अपने घरों के किवाड खोल कर आने वाले का स्वागत करते हैं, और अस्त होने पर अपने घरों के किवाड बन्द कर लेते हैं। सूर्य ही कालचक्र के प्रणेता है। सूर्य से ही दिन रात पल मास पक्ष तथा संवत आदि का विभाजन होता है। सूर्य सम्पूर्ण संसार के प्रकाशक हैं। इनके बिना अन्धकार के अलावा और कुछ नहीं है। सूर्य आत्माकारक ग्रह है, यह राज्य सुख,सत्ता,ऐश्वर्य,वैभव,अधिकार, आदि प्रदान करता है। यह सौरमंडल का प्रथम ग्रह है, कारण इसके बिना उसी प्रकार से हम सौरजगत को नहीं जान सकते थे, जिस प्रकार से माता के द्वारा पैदा नहीं करने पर हम संसार को नहीं जान सकते थे। सूर्य सम्पूर्ण सौर जगत का आधार स्तम्भ है। अर्थात सारा सौर मंडल,ग्रह,उपग्रह,नक्षत्र आदि सभी सूर्य से ही शक्ति पाकर इसके इर्द गिर्द घूमा करते है, यह सिंह राशि का स्वामी है,परमात्मा ने सूर्य को जगत में प्रकाश करने,संचालन करने, अपने तेज से शरीर में ज्योति प्रदान करने, तथा जठराग्नि के रूप में आमाशय में अन्न को पचाने का कार्य सौंपा है।<ज्योतिष< शास्त्र में सूर्य को मस्तिष्क का अधिपति बताया गया है,ब्रह्माण्ड में विद्यमान प्रज्ञा शक्ति और चेतना तरंगों के द्वारा मस्तिष्क की गतिशीलता उर्वरता और सूक्षमता के विकाश और विनाश का कार्य भी सूर्य के द्वारा ही होता है। यह संसार के सभी जीवों द्वारा किये गये सभी कार्यों का साक्षी है। और न्यायाधीश के सामने साक्ष्य प्रस्तुत करने जैसा काम करता है। यह जातक के ह्रदय के अन्दर उचित और अनुचित को बताने का काम करता है, किसी भी अनुचित कार्य को करने के पहले यह जातक को मना करता है, और अंदर की आत्मा से आवाज देता है। साथ ही जान बूझ कर गलत काम करने पर यह ह्रदय और हड्डियों में कम्पन भी प्रदान करता है। गलत काम को रोकने के लिये यह ह्रदय में साहस का संचार भी करता है।
सूर्य ग्रह से प्रदान किये जाने वाले रोगजातक के गल्ती करने और आत्म विश्लेषण के बाद जब निन्दनीय कार्य किये जाते हैं, तो सूर्य उन्हे बीमारियों और अन्य तरीके से प्रताडित करने का काम करता है, सबसे बड़ा रोग निवारण का उपाय है कि किये जाने वाले गलत और निन्दनीय कार्यों के प्रति पश्चाताप, और फ़िर से नहीं करने की कसम, और जब प्रायश्चित कर लिया जाय तो रोगों को निवारण के लिये रत्न,जडी, बूटियां, आदि धारण की जावें, और मंत्रों का नियमित जाप किया जावे.सूर्य ग्रह के द्वारा प्रदान कियेजाने वाले रोग है- सिर दर्द,बुखार, नेत्र विकार,मधुमेह,मोतीझारा,पित्त रोग,हैजा,हिचकी. यदि औषिधि सेवन से भी रोग ना जावे तो समझ लेना कि सूर्य की दशा या अंतर्दशा लगी हुई है। और बिना किसी से पूंछे ही मंत्र जाप,रत्न या जडी बूटी का प्रयोग कर लेना चाहिये। इससे रोग हल्का होगा और ठीक होने लगेगा। सूर्य ग्रह के रत्न उपरत्नसूर्य ग्रह के रत्नों में माणिक और उपरत्नो में लालडी, तामडा, और महसूरी.पांच रत्ती का रत्न या उपरत्न रविवार को कृत्तिका नक्षत्र में अनामिका उंगली में सोने में धारण करनी चाहिये। इससे इसका दुष्प्रभाव कम होना चालू हो जाता है। और अच्छा रत्न पहिनते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा होता देखा गया है। रत्न की विधि विधान पूर्वक उसकी ग्रहानुसार प्राण प्रतिष्ठा अगर नहीं की जाती है, तो वह रत्न प्रभाव नहीं दे सकता है। इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी में जडवाने से पहले इसकी प्राण प्रतिष्ठा करलेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर तो अपने आप में पत्थर ही है, जिस प्रकार से मूर्तिकार मूर्ति को तो बना देता है, लेकिन जब उसे मन्दिर में स्थापित किया जाता है, तो उसकी विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह मूर्ति अपना असर दे सकती है। इसी प्रकार से अंगूठी में रत्न तभी अपना असर देगा जब उसकी विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी. सूर्य ग्रह की जड़ी बूटियांबेल पत्र जो कि शिवजी पर चढ़ाएं जाते है, आपको पता होगा, उसकी जड़ रविवार को हस्त या कृत्तिका नक्षत्र में लाल धागे से पुरुष दाहिने बाजू में और स्त्रियां बाईं बाजू में बांध लें, इस के द्वारा जो रत्न और उपरत्न खरीदने में असमर्थ है, उनको भी फ़ायदा होगा। सूर्य ग्रह के लिये दानसूर्य ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिये अपने बजन के बराबर के गेंहूं, लाल और पीले मिले हुए रंग के वस्त्र, लाल मिठाई, सोने के रबे, कपिला गाय, गुड और तांबा धातु, श्रद्धा पूर्वक किसी गरीब ब्राहमण को बुलाकर विधि विधान से संकल्प पूर्वक दान करना चाहिये। सूर्य ग्रह से प्रदत्त व्यापार और नौकरीस्वर्ण का व्यापार, हथियारों का निर्माण, ऊन का व्यापार, पर्वतारोहण प्रशिक्षण, औषधि विक्रय, जंगल की ठेकेदारी, लकड़ी या फ़र्नीचर बेचने का काम, बिजली वाले सामान का व्यापार आदि सूर्य ग्रह की सीमा रेखा में आते है। शनि के साथ मिलकर हार्डवेयर का काम, शुक्र के साथ मिलकर पेन्ट और रंगरोगन का काम, बुध के साथ मिलकर रुपया पैसा भेजने और मंगाने का काम, आदि हैं। सचिव, उच्च अधिकारी, मजिस्ट्रेट, साथ ही प्रबल राजयोग होने पर राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राज्य मंत्री, संसद सदस्य, इन्जीनियर, न्याय सम्बन्धी कार्य, राजदूत, और व्यवस्थापक आदि के कार्य नौकरी के क्षेत्र में आते हैं। सूर्य की कमजोरी के लिये सूर्य के सामने खडे होकर नित्य सूर्य स्तोत्र, सूर्य गायत्री, सूर्य मंत्र आदि का जाप करना हितकर होता है। सूर्य के लिये आदित्य मंत्र, तथा दोनों पत्नियों के विवरण
भगवान आदिदेव परंब्रह्म परमात्मा सूर्य के दो पत्नियां हैं। उनकी प्रथम पत्नी देवी भगवती संज्ञा और द्वितीय पत्नी देवी भगवती छाया है। यह दोनों देवी भगवान आदिदेव परंब्रह्म परमात्मा सूर्य के प्राणस्वरूप है। देवी छाया और देवी संज्ञा के बिना भगवान सूर्य के अस्तित्व का कल्पना नहीं किया जा सकता। देवी लक्ष्मी देवी सरस्वती देवी पार्वती की तरह देवी संज्ञा और देवी छाया भी परमशक्ति स्वरूपिणी है। मार्तण्डभैरवागम में प्राप्त दोनों देवीयों के ध्यान एवं मंत्र:- छायादेवी ध्यानम्:- चतुर्भुजाब्जयुगलांवराभयानि त्रिलोचनां हारकिरीटशोभिताम् । नीलोत्पलदलश्यामां पद्मासनगतां मार्तंडवनितां नौमि नित्यां। मंत्र:- ऐं ॐ ह्रीं सूर्यभार्याछायामायायै स्वाहाः संज्ञादेवी ध्यानम्:- पद्मासनस्थां कमलवराभयानियुगलां सन्दधतीं करपंकजे त्रिनेत्राम् । सम्बिभ्रतीमाभरणानि रक्तां संज्ञां पद्ममुखीं नमामि चण्डरश्मिरूपाम्।। मंत्र:- ऐं श्रीं क्लीं संज्ञायै स्वाहाः जैसे शैव शाक्त वैष्णव मत में आगम का प्रचलन है ठीक उसी तरह सौरमत में २४ आगमों का प्रचलन है। उन आगमों के नाम:- मार्तण्डभैरवागम, सौरागम, छायागम, विश्वकर्मागम, आदित्यागम, अर्कागम, विश्वतापनिआगम, अश्वागम, संज्ञादित्यागम, पद्मागम, पर्जन्यागम, त्वष्टागम, रथागम, सौररहस्यागम, आदित्यवैभवागम, काश्यपरहस्य, सौरयामलागम, पिंगलरहस्य, सूर्यतंत्र, हिरण्यचेतसतंत्र, प्रतापमाधूर्यतंत्र, आदित्यभैरवतंत्र, भुवनभास्करतंत्र, विश्वरेतागम इति। सूर्याष्टक स्तोत्र
इन्हें भी देखें
सन्दर्भ
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