सीता कुंड
सीता कुंड (Sita Kund) भारत के बिहार राज्य में सीतामढ़ी नगर के समीप पुनौरा ग्राम स्थित एक हिन्दू तीर्थ स्थल है। यहाँ एक प्राचीन हिन्दू मंदिर है। सीतामढ़ी से 5 किलोमीटर दूर यह स्थल पर्यटकों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। पुनौरा धाम जानकी कुंड (Punaura Dham Janki Mandir) पौराणिक काल में पुंडरिक ऋषि के आश्रम के रूप में विख्यात था। पुनौरा में ही देवी सीता का जन्म हुआ था। मिथिला नरेश जनक ने इंद्र देव को खुश करने के लिए अपने हाथों से यहाँ हल चलाया था। इसी दौरान एक मृदापात्र में देवी सीता बालिका रूप में उन्हें मिली। मंदिर के अलावे यहाँ पवित्र कुंड है।[1][2] स्थान
सीतामढ़ी शहर नेपाल की सीमा पर स्थित है। सीतामढ़ी जिला पहले मुजफ्फरपुर का १९७२ तक अंश था। सीतामढ़ी जिला का मुख्यालय डुमरा में है। सीतामढ़ी एक सुंदर जगह है। यह राजधानी पटना शहर से करीब १४० किलोमीटर दूर है और सीतामढ़ी सहर पुराण और इतिहास से जुड़ा हुआ है। सीता रसोई27 जनवरी 2019 को श्री रामानंदाचार्य जी की जयंती के अवसर से श्री सीता रसोई शुरू किया गया है। श्री महावीर मंदिर पटना न्यास के मुख्य न्यासी श्री कुणाल किशोर की ओर से पुनौरा धाम मंदिर में सीतामढ़ी के बाहर से आए सभी साधु-संतों को एवं तीर्थ यात्रियों को पुनौरा धाम में दिन एवं रात्रि में मुफ्त भोजन उपलब्ध कराया जाएगा हैं। किंवदन्ती कथामान्यताओ के अनुसार रामायण महाकाब्य का एक मुख्य चरित्र "सीता" का यहीं जन्म हुआ। सीतामढ़ी हिन्दू धर्म के लिए एक बेहद पवित्र स्थल है और इसका इतिहास त्रेता जुग तक लंबा रहा है। कहा जाता है कि बारिश ना होने की वजह से भगवान इंद्र को आकर्षित करने के लिए जब राजा जनक खेत में खुद खेती का काम कर रहे थे तो जमीन के नीचे से सीता प्रकट हुई थी। राजा जनक ने उसी जगह पर एक पूस्करणी खुदवया और माता सीता की शादी के बाद इसी जगह पर राम,लक्ष्मन और सीता की प्रतिमूर्ति रख कर एक मंदिर बनवाया जिसे जानकी - मंदिर कहा जाता है। कुंड जानकी- कुंड नाम से प्रसिद्ध है। समय बीतने पर यह जगह जंगल में परिणत हुआ और करीब ५०० साल बाद बीरबल दास नाम के एक व्यक्ति ने इस्वरिक निर्देश से यह जगह देखा। उसी ने जंगाल को साफ करने के बाद एक राजा जनक का बनाया हुआ मूर्ति रखकर एक मंदिर बनवाया। मंदिर करीब १०० साल पुराना है। संक्षिप्त इतिहाससीतामढ़ी पौराणिक आख्यानों में त्रेतायुगीन शहर के रूप में वर्णित है। त्रेता युग में राजा जनक की पुत्री तथा भगवान राम की पत्नी देवी सीता का जन्म पुनौरा में हुआ था। पौराणिक मान्यता के अनुसार मिथिला एक बार दुर्भिक्ष की स्थिति उत्पन्न हो गाय थी। पुरोहितों और पंडितों ने मिथिला के राजा जनक को अपने क्षेत्र की सीमा में हल चलाने की सलाह दी। कहते हैं कि सीतामढ़ी के पुनौरा नामक स्थान पर जब राजा जनक ने खेत में हल जोता था, तो उस समय धरती से सीता का जन्म हुआ था। सीता जी के जन्म के कारण इस नगर का नाम पहले सीतामड़ई, फिर सीतामही और कालांतर में सीतामढ़ी पड़ा।[3] ऐसी जनश्रुति है कि सीताजी के प्रकाट्य स्थल पर उनके विवाह पश्चात राजा जनक ने भगवान राम और जानकी की प्रतिमा लगवायी थी। लगभग ५०० वर्ष पूर्व अयोध्या के एक संत बीरबल दास ने ईश्वरीय प्रेरणा पाकर उन प्रतिमाओं को खोजा और उनका नियमित पूजन आरंभ हुआ। यह स्थान आज जानकी कुंड के नाम से जाना जाता है। प्राचीन कल में सीतामढी तिरहुत का अंग रहा है। इस क्षेत्र में मुस्लिम शासन आरंभ होने तक मिथिला के शासकों के कर्नाट वंश ने यहाँ शासन किया। बाद में भी स्थानीय क्षत्रपों ने यहाँ अपनी प्रभुता कायम रखी लेकिन अंग्रेजों के आने पर यह पहले बंगाल फिर बिहार प्रांत का अंग बन गया। १९०८ ईस्वी में तिरहुत मुजफ्फरपुर जिला का हिस्सा रहा। स्वतंत्रता पश्चात ११ दिसम्बर १९७२ को सीतामढी को स्वतंत्र जिला का दर्जा मिला, जिसका मुख्यालय सीतामढ़ी को बनाया गया। पौराणिक महत्व![]() ![]() ![]() वृहद विष्णु पुराण के वर्णनानुसार सम्राट जनक की हल-कर्षण-यज्ञ-भूमि तथा उर्बिजा सीता के अवतीर्ण होने का स्थान है, जो उनके राजनगर से पश्चिम ३ योजन अर्थात २४ मिल की दूरी पर स्थित थी। लक्षमना (वर्तमान में लखनदेई) नदी के तट पर उस यज्ञ का अनुष्ठान एवं संपादन बताया जाता है। हल-कर्षण-यज्ञ के परिणामस्वरूप भूमि-सुता सीता धारा धाम पर अवतीर्ण हुयी, साथ ही आकाश मेघाच्छन्न होकर मूसलधार वर्षा आरंभ हो गयी, जिससे प्रजा का दुष्काल तो मिटा, पर नवजात शिशु सीता की उससे रक्षा की समस्या मार्ग में नृपति जनक के सामने उपस्थित हो गयी। उसे वहाँ वर्षा और वाट से बचाने के विचार से एक मढ़ी (मड़ई, कुटी, झोपड़ी) प्रस्तुत करवाने की आवश्यकता पड़ी। राजा की आज्ञा से शीघ्रता से उस स्थान पर एक मड़ई तैयार की गयी और उसके अंदर सीता सायत्न रखी गयी। कहा जाता है कि जहां पर सीता की वर्षा से रक्षा हेतु मड़ई बनाई गयी उस स्थान का नाम पहले सीतामड़ई, कालांतर में सीतामही और फिर सीतामढ़ी पड़ा। यहीं पास में पुनौरा ग्राम है जहां रामायण काल में पुंडरिक ऋषि निवास करते थे। कुछ लोग इसे भी सीता के अवतरण भूमि मानते हैं। परंतु ये सभी स्थानीय अनुश्रुतियाँ है। सीतामढ़ी तथा पुनौरा जहां है वहाँ रामायण काल में घनघोर जंगल था। जानकी स्थान के महन्थ के प्रथम पूर्वज विरक्त महात्मा और सिद्ध पुरुष थे। उन्होने "वृहद विष्णु पुराण" के वर्णनानुसार जनकपुर नेपाल से मापकर वर्तमान जानकी स्थान वाली जगह को ही राजा जनक की हल-कर्षण-भूमि बताई। पीछे उन्होने उसी पावन स्थान पर एक बृक्ष के नीचे लक्षमना नदी के तट पर तपश्चर्या के हेतु अपना आसन लगाया। पश्चात काल में भक्तों ने वहाँ एक मठ का निर्माण किया, जो गुरु परंपरा के अनुसार उस कल के क्रमागत शिष्यों के अधीन आद्यपर्यंत चला आ रहा है। सीतामढ़ी में उर्वीजा जानकी के नाम पर प्रतिवर्ष दो बार एक राम नवमी तथा दूसरी वार विवाह पंचमी के अवसर पर विशाल पशु मेला लगता है, जिससे वहाँ के जानकी स्थान की ख्याति और भी अधिक हो गयी है।[4] श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड में ऐसा उल्लेख है कि "राजकुमारों के बड़े होने पर आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु ऋषि विश्वामित्र राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मार डाला और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिया। उधर लक्ष्मण ने राक्षसों की सारी सेना का संहार कर डाला। धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक के निमंत्रण मिलने पर विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ उनकी नगरी मिथिला (जनकपुर) आ गये। रास्ते में राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या का उद्धार किया, यह स्थान सीतामढ़ी से ४० कि. मी. अहिल्या स्थान के नाम पर स्थित है। मिथिला में राजा जनक की पुत्री सीता जिन्हें कि जानकी के नाम से भी जाना जाता है का स्वयंवर का भी आयोजन था जहाँ कि जनकप्रतिज्ञा के अनुसार शिवधनुष को तोड़ कर राम ने सीता से विवाह किया| राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से करवा दिया।" राम सीता के विवाह के उपलक्ष्य में अगहन विवाह पंचमी को सीतामढ़ी में प्रतिवर्ष सोनपुर के बाद एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है। इसी प्रकार जामाता राम के सम्मान में भी यहाँ चैत्र राम नवमी को बड़ा पशु मेला लगता है। प्रमुख पर्यटन स्थल
अन्य प्रमुख स्थल
चित्रदीर्घा
इन्हें भी देखेंबाहरी कड़ियाँ
सन्दर्भ
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